Class 8 Hindi Natak me Natak | नाटक में नाटक पाठ का व्‍याख्‍या

यहाँ NCERT कक्षा 8 के हिन्‍दी के दूर्वा भाग 3 के पाठ 5 नाटक में नाटक के व्‍याख्‍या काे पढ़ने जा रहे हैंं, जिसके लेखक मंगल सक्‍सेना है। Class 8 Hindi Natak me natak Notes

Class 8 Hindi Natak me Natak

पाठ-5
नाटक में नाटक

कवि कहते हैं कि बिना पूरी तैयारी के कोई भी खेल या नाटक का खेल नहीं खेलना चाहिए । जब नाटक में कलाकार भी नए हों । तो वह मंच पर आकर डर जाते हैं, घबरा जाते हैं । इसलिए पूरी तैयारी कि‍ए बिना कोई भी नाटक का खेल नहीं खेलना चाहिए । इस नाटक में सोहन, मोहन और श्याम भी ऐसे ही थे । राकेश उनके अभिनय पर बिल्कुल यकीन नहीं करता था । क्योंकि वह तीनों भी कुछ ऐसे ही थे । और राकेश खुद इसलिए नहीं खेल रहा था क्योंकि फुटबॉल खेलते समय अचानक वह गिर गया और उसके हाथ में चोट लग गई । हाथों को एक पट्टी से लपेट कर रखना पड़ता था । इसलिए वह खुद इस नाटक में भाग नहीं ले सकता था ।

नाटक खेलना भी बहुत जरूरी था, क्योंकि इस मोहल्ले की इज्जत का सवाल था । मोहल्ले के सभी बच्चों ने मिल जुलकर एक छोटी सी मैदान में फूल और दूभ, पौधे लगाए थे वही एक मंच भी बना लिया था । राकेश की योग्यता पर सभी को बहुत विश्वास था, लेकिन समय कम था एक सप्ताह का दिन बचा हुआ था । उनको पता भी नहीं चला इतने सारे दिन कैसे निकल गए । मोहन सोहन और श्याम तीनों ने तो अच्छी तरह प्रैक्टिस की थी लेकिन राकेश को उनके बेवकुफी और बुद्धुपन से डर था । सभी एक दूसरे से खुद को ज्यादा समझदार समझते थे । इसलिए भूल जाता है कि वह क्या कर रहा है क्या बोल रहा है । भले ही दूसरे लोग उसके मूर्खतापन बातों पर हँसे मगर वह पागलों की तरह अपने आपस में हीं उलझते रहते थे । राकेश ने अभ्‍यास के सात दिनों में उन्हें बहुत अच्छी तरह से समझाया था । निर्देश उसने इतना अच्छा दिया कि हर एक छोटी से छोटी बात और साधारण से साधारण बात सभी को समझ में आ जाए ।
 आखिर में प्रदर्शन का दिन आ गया । राकेश सब कुछ साज- सज्‍जा कक्ष में खड़ा सबको खास- हिदायतें दे रहा था ।
मोहन बोला मेरा तो दिल बहुत जोरो से धड़क रहा है । सोहन बोलता है मेरा भी, सिने पर हाथ रखकर कहा ।

राकेश बोलता है तुम लोग पानी पीयो और अपनी हिम्मत बढ़ाओ राकेश ने सभी की हिम्मत फिर से बढ़ाई ।

नाटक शुरू हो गया परदा उठा मोहन चित्रकार बना था और सोहन बना था उर्दू का शायर, नाटक में दोनों दोस्त थे । चित्रकार कहते हैं उसकी कला महान है, तो शायर कहता है उसकी कला महान । श्याम बनता है संगीतकर । वह उनसे मुलाक़ात करने उनके पास आता है, जहाँ पर ये बहस कर रहे हैं । यानी कि बातें कर रहे थे । बीना ये कहे कि वह नए-नए मित्रों से मधुर आवाज में बात करें । सभी बड़े-छोटे इस विवाद में उलझ जाता है । वह कहता है कि संगीत कलाकार की कला महान है ।

यानि कि सभी एक दूसरे को खुद से महान बताने में लगे रहते हैं अभी तक सब कुछ अच्छा चल रहा था अचानक श्याम अपना पार्ट भूल गया, यानी की अपनी लाइन भूल गया । पर्दे के पिछे छुपा राकेश खुद पूरा नाटक लिए खड़ा था । वह हर एक लाइन का पहला शब्द बोल रहा था, ताकि सभी कलाकारों को अपनी-अपनी लाइन याद आता रहे, मगर श्याम घबरा गया । वह अचानक चुप हो गया उसके चुप होने से चित्रकार और शायर महोदय भी चुप हो गए । लेकिन होना यह चाहिए था कि दोनों कोई बात मन की बात ही बनकर आगे बढ़ा देते तो फिर कुछ गड़बड़ ही नहीं होती । लेकिन वे घबरा कर राकेश की तरफ देखने लगते हैं संगीत कलाकार भी पलट कर राकेश की ओर देखने लगते हैं । सभी एक दूसरे के मुँह ताकने लगें । राकेश बार-बार संगीतकार जी का संवाद बोल रहा था, उसकी लाइन धीरे-धीरे पर्दे के पीछे से फुसफुसा बता रहा था । लेकिन संगीतकार जी को उनकी हल्‍की आवाज सुनाई नहीं दे रहा था । शायर साहब संगीतकार के कंधे पर हाथ मार कर बोले कि उधर जाकर सुन ले न । संगीतकर अपना वायलिन पकड़े पकड़े राकेश की ओर खिसकता है ।
सभी दर्शक ठठाकर हँसने लगें । संगीतकर जी और घबरा गये जो कुछ भी सुनाई दे रहा था उसको बिना सोंचे समझे बोलने लगें । संवाद था ‘जब संगीत की स्वर लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुग्‍ध हो जाते हैं’।

शायर साहब आप क्या समझते हैं संगीत को मगर संगीतकार साहब भूल गए, स्वर लहरी गूँजती है तो पशु-पक्षी तक मुँह की खा जाते हैं, गाजर साहब ।
क्या समझते हैं आप हमें?
शायर साहब तपाक से बोले, तुम्हारा सर । गाजर साहब हूँ मैं?
दर्शक फिर जोर-जोर से हँस पड़े ।
चित्रकार जी ने मंच पर सूझ और अकालमंदी दिखाने की कोशिश की- इनका मतलब ये है कि शायरी गजर मूली है और आप गाजर साहब हैं । तो इनकी काला महान है । मगर कला तो इनसे भी महान है ।

राकेश पर्दे के पीछे से दांत पीस रहा था यानी गुस्सा हो रहा था । उसकी सारी मेहनत पर पानी जो पड़ गया था । पर इस तरह बात संभालता देख कर शांत हो गया इस बार शायर साहब बुद्धुपन दिखा रहे थे । गुस्सा होकर बोले, तूने भी गलत बोल दिया । मुझे गाजर साहब कहने की बात थी क्या? और मेरी शायरी गाजर मूली है, तो तेरी चित्रकला झाड़ू पोछा है, पोतना है, झक मारना है ।

चित्रकार महोदय ने हाथ उठाकर कहा देख, मुँह संभाल कर बोला करो । दर्शक फिर बड़े जोर-जोर से हँस पड़े । राकेश घबरा रहा था, गुस्सा भी आ रहा था और रोना भी आ रहा था, सारी इज्जत मिट्टी में जो मिल गई थी । पर अब क्या हो वह बार-बार दोनों हथेलियों को आपस में मसल रहा था और इसे संभालने के लिए कुछ तरकीब सोच रहा था । इधर मंच पर तीनों में जोरों से तू-तू मैं-मैं हो रही थी । चित्रकार जी हाथ में कुची पकड़े आँखें नचा-नचा कर मटक-मटक कर बोल रहे थे-

अरे चमगादड़ तुझे क्या खाक शायरी करना आता है । जबरदस्ती ही तुझे यह पार्ट दे दिया है । तो तू सारा गड़बड़ कर दिया । चित्रकार बोलता है मुझे चमगादड़ कहता है, अरे आलू बुखारे शायरी तो मेरी बातों से टपकती है । तूने कभी टू‍थ ब्रुश के अलावा कोई और ब्रुश भी उठाया है क्या ? यहाँ चित्रकार बना दिया तो सच में अपने आप को चित्रकार समझ रहा है ।

सामने बैठे दर्शक हँसी से लोटपोट हुए जा रहे थे । संगीतकर महोदय जी उन लड़ते कलाकारों की ओर हाथ नाचते कभी दर्शकों की ओर ।
यह सब देखकर राकेश तेजी से मंच पर आ जाता है सभी चुप हो जाते हैं । राकेश एक कुर्सी पर बैठ जाता है और कहता है आज मुझे अस्पताल में हाथ पर पट्टी बंधवाने में देर हो गई । तो तुमने इस तरह से रिहर्सल की है । जोर-जोर से लड़ने लगे । अभिनय का दिन पास आ गया है और हमारी तैयारी का यह हाल है ।
रा‍केश बात काटते हुए बोलता है कि हमने कहा था कि रिहर्सल के बिच अगर कोई गड़बड़ हो जाए तो फिर से रिर्सल को शुरू कर देना । और ये मानकर चलना है कि दर्शक सामने ही बैठे है । लेकिन तुम सब तो लड़ने लगे । सब गड़बड़ कर दिया ।

कुछ बाते रा‍केश ने संभाल ली । ये देखकर कुछ लोग मन में ही राकेश की प्रसंसा कर रहे थे । दर्शक भौचक्‍के होकर सोंच रहे थे कि नाटक गड़बड़ हो गया । मगर यहाँ तो नाटक में ही नाटक था । उसकी रिहर्सल ही नाटक था । मानो इस नाटक में नाटक की कठिनाइयों और कमजोरियों को ही दिखाया गया था ।
राकेश कहता है ‘’देखिए हमारे नाटक का नाम है बड़ा ‘’कलाकार’’ और बड़ा कलाकार वह है, जो दूसरो की गलतियों को नहीं बल्कि अपनी गलतियों को देखकर सुधारे । आइए अब हम फिर से रिहर्सल शुरू करते हैं ।‘’

फिर राकेश के इसारे पर पर्दा गिर गया । सभी दर्शक नाटक की बहुत प्रशंसा करते हुए अपने घर चले गए ।

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